काफी दिनों से एक विचार मेरे मन में उथल-पुथल मचा रहा था कि मैं इस विषय पर लिखूं कि मेरा देश भारत आजाद होने के बाद भारत अथवा हिन्दुस्तान न होकर इंडिया में कैसे, क्यों और कब तब्दील हो गया।
ऐसे कौन से कारण रहे हैं, जो इसे इंडिया बनाने में कामयाब हुए।
यदि यह इंडिया में नहीं बदला होता तो आज उसकी हालत क्या होती अर्थात् कैसा होता यह देश और साथ ही यह भी कि इंडिया बनकर आज भारत किस हाल में है।
क्या उसे वह सब मिल गया जो उसने आजादी का संघर्ष करते समय चाहा था?
क्या आज वे सब कारण, समस्याएं नहीं हैं, जिनकी वजह से हम आजादी चाहते थे और गुलामी से मुक्ति पाकर अंग्रेजों के शासन से पीछा छुड़ाना चाहते थे।
क्या देश के अधिसंख्य लोग अंग्रेजों की मनमर्जी से त्रस्त थे या फिर यह कि कुछ गिने-चुने लोग ही इस देश को अपनी तरह से चलाना चाहते थे?
ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिन पर एक अर्से से सोचा जा रहा था। दिमाग में यह बात लगातार गूंज रही थी कि इस विषय पर लिखा जाना चाहिए।
देश के विभाजन औैर ट्रांसफर आॅफ पाॅवर यानी देश की कथित स्वतंत्रता/आजादी के बारे में लिखने की शुरुआत कर रहा हूं।
सत्ता हस्तांतरण को बताया स्वाधीनता दिवस
आधिकारिक तौर पर 15 अगस्त 1947 को देश के आजाद होने के बारे ऐसा कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है जिससे यह साबित किया जा सके कि 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों ने इस देश को आजादी दी थी।
देश में उपलब्ध सभी दस्तावेजों के मुताबिक संयुक्त हिंदुस्तान को विभाजित करने के बाद अंग्रेजों ने भारत में ट्रांसफर आॅफ पाॅवर यानी सत्ता का हस्तांतरण 15 अगस्त 1947 को किया था।
इसे और भी आसान शब्दों में ऐसे कहा जा सकता है कि अंग्रेजों और तत्कालीन भारतीय नेताओं के बीच आधिकारिक तौर पर 15 अगस्त 1947 को 99 वर्ष के लिए सत्ता सौंपने का समझौता हुआ था।
गांधी-नेहरू की बदौलत आजादी मिलना पढ़ाया
इसके तहत देश पर शासन करने के लिए अंग्रेजों ने जिस तरह की व्यवस्था यहां बनाई हुई थी, वे सभी व्यवस्थाएं ज्यों की त्यों ही रहने वाली थीं, इसमें अंतर बस इतना ही आना था कि पहले जो व्यवस्था ब्रिटिश लोगों द्वारा संचालित की जाती रही थी, वही अब देेेेशी यानी भारतीय लोगों द्वारा अंजाम दी जानी थी।
इसके अतिरिक्त देश की शासन व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होना था, लेकिन तत्कालीन कर्ताधर्ताओं यानी नेताओं ने सत्ता हस्तांतरण के इस खेल को अंग्रेजों से आजादी मिलने के तौर पर प्रचारित किया।
तब से लेकर अब तक यही बात कही/पढ़ाई जाती रही है कि 15 अगस्त 1947 को हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ था।
लगातार तीन पीढ़ियों तक यही बात कहे/पढ़ाए जाने का ही नतीजा है कि देश के लोगों के मन में यह बात अच्छी तरह बैठकर घर कर गई है कि देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली थी।
इसके साथ ही तत्कालीन शासक वर्ग द्वारा यह बात भी लोगों के दिलोदिमाग में इस कदर बैठा दी गई कि यह आजादी गांधी-नेहरू की बदौलत यानी अहिंसा की वजह से हासिल हुई।
दिलचस्प बात यह है कि अंग्रेजों से आजादी के लिए पहला संघर्ष 1857 में शुरू हो गया था। इसके बाद से लगातार अनेक क्रांतिकारी नेताओं ने अपना बलिदान देकर आजादी की इस जोत को जलाए रखा था।
देश को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारी नेताओं के अलावा नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई और अंग्रेजी शासकों से उन्होंने लगातार संघर्ष किया।
इतना ही नहीं 21 अक्टूबर 1943 को उन्होंने अंडमान निकोबार में देश को आजाद घोषित करते हुए अपने को प्रधानमंत्री बनाया। सुभाषचंद्र बोस की इस सरकार को रूस सहित दुनिया के करीब 11 देशो ने मान्यता भी प्रदान कर दी थी, लेकिन बाद में उन्हें तत्कालीन तिकड़मबाज नेताओं ने ब्रिटिश सरकार का युद्ध अपराधी घोषित कर दिया।
अगले ब्लॉग में पढ़ें देश की आजादी के समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे रिचर्ड क्लीमेट एटली का बयान
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