जनरल जीडी बक्षी ने अपनी किताब बोस: एन इंडियन समुराई में इस पर विस्तार से लिखा
जनरल जीडी बक्षी ने उनके द्वारा लिखी गई किताब बोस: एन इंडियन समुराई में इस विषय में विस्तार से लिखा है।
जनरल जीडी बख्शी ने इस पुस्तक में ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री क्लेमेंट एटली और पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल न्यायमूर्ति पीबी चक्रवर्ती के बीच हुई बातचीत का उद्धरण देते हुए बताया है कि 1956 में क्लेमेंट एटली भारत आए थे और तत्कालीन राज्यपाल के अतिथि के रूप में कोलकाता में रहे थे।
गौर करने वाली बात यह है कि क्लेमेंट रिचर्ड एटली वे व्यक्ति थे, जिन्होंने 1945 और 1951 के बीच लेबर पार्टी के नेता और ब्रिटिश प्रधान मंत्री के रूप में भारत को स्वतंत्रता देने के निर्णय पर हस्ताक्षर किए थे। इसलिए उनके द्वारा बताई/कही गई बात को किसी भी तरह से नकारा नहीं जा सकता।
अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए सुभाष चंद्र बोस की वजह से मजबूर होना पड़ा।
वर्ष 1956 में पीबी चक्रवर्ती कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे और साथ ही पश्चिम बंगाल के कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में भी कार्यरत थे।
उन्होंने आरसी मजूमदार की किताब ए हिस्ट्री ऑफ बंगाल के प्रकाशक को एक पत्र लिखा।
इस पत्र में मुख्य न्यायाधीश ने लिखा कि जब मैं कार्यवाहक गवर्नर था, तब क्लेमेंट रिचर्ड एटली, जिन्होंने भारत से ब्रिटिश शासन को हटाकर हमें स्वतंत्रता दी थी, उन्होंने भारत दौरे के समय कलकत्ता में गवर्नर के महल में दो दिन बिताए।
उस समय मेरी अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए प्रेरित करने वाले वास्तविक कारकों के बारे में उनके साथ लंबी चर्चा हुई, जिसमें उन्होंने बताया था कि अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए सुभाष चंद्र बोस की वजह से मजबूर होना पड़ा था।
क्लेमेंट रिचर्ड एटली ने ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में दिया था बयान
इतना ही नहीं ब्रिटेन के लोगों ने भारत से ब्रिटिश शासन को समाप्त करने पर ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर वहां के प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़ा कर दिया था।
ब्रिटेन के लोगों ने सवाल किया कि जब हमारा देश द्वितीय विश्वयुद्ध जीत चुका था तो उस समय भारत को आजाद करने की क्या जरूरत थी?
ब्रिटेन के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लेमेंट रिचर्ड एटली से पूछा था कि आखिर आपने भारत को छोड़ने का निर्णय क्यों लिया, वह भी तब जब ब्रिटेन दूसरा विश्वयुद्ध जीत चुका था और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन फ्लॉप हो चुका था, ऐसे में आप (ब्रिटेन) ने भारत को अचानक विभाजित करने का फैसला क्यों किया?
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने बताया इस वजह से किया था भारत को आजाद
मुख्य न्यायाधीश के इस सवाल का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री क्लेमेंट रिचर्ड एटली ने कहा कि 25 लाख भारतीय सैनिक द्वितीय विश्वयुद्ध जीतकर लौट रहे थे।
इस बीच कराची नेवल बेस, जबलपुर, आसनसोल जैसी कई जगहों से सैनिक विद्रोह की खबरें आ रही थी।
सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज लगातार ब्रिटेन सेना पर दबाव बढ़ा रही थी।
एटली ने आगे कहा कि हम जान गए थे कि अब ज्यादा दिनों तक भारत पर कब्जा बनाए रखना मुश्किल है।
गांधी के अहिंसक आंदोलन का कोई असर नहीं
सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व के प्रभाव से भारत में लोग राष्ट्रीय अस्मिता और राष्ट्र के स्वाभिमान को लेकर उग्र हो रहे थे।
अगर हम भारत को नहीं छोड़ते तो सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में और बड़ा आंदोलन हो सकता था जो ब्रिटेन को बहुत नुकसान पहुंचाता।
हां अगर गांधी की तरह कोई अहिंसक आंदोलन होता रहता तो हम पर उसका कोई असर नहीं होता।
ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में दिए गए इस बयान के बाद यह कहना कि गांधी ने इस देश आजादी दिलाई, न सिर्फ सुभाष चंद्र बोस बल्कि आजाद हिंद फौज की कामयाबी को अनदेखा करना ही माना जाएगा।
इसीलिए कई ऐसे लोग हैं जो देश की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन के योगदान को नकारते हैं और आजादी का पूरा श्रेय सुभाष चंद्र बोस और अन्य कई महापुरुषों को देते हैं।
आम जनमानस के दिमाग में यह बैठा दिया कि गांधी-नेहरू ने देश आजाद कराया था
आजादी के लिए करीब 90 साल तक हुए संषर्घ में अनगिनत लोगों ने अपना योगदान/बलिदान दिया, लेकिन इन सभी को दरकिनार कर केवल और केवल गांधी-नेहरू द्वारा देश को आजाद कराए जाने के बारे में अब तक लोगों को जानकारी दी जाती रही है।
लगातार इतिहास में इसे ही पढ़ाए जाने का नतीजा है कि देश के आम जनमानस के दिलोदिमाग में यह बात काबिज हो गई है कि गांधी-नेहरू ने इस देश आजाद कराया, जबकि तत्कालीन नेता इस तथ्य को जानते थे कि यह आजादी नहीं बल्कि केवल सत्ता का हस्तांतरण मात्र है इसलिए उन्होंने देश के लिए नहीं, महज अपनी सुख-सुविधाओं को ध्यान में रखा।
अब यदि अंग्रेजों द्वारा किए गए सत्ता हस्तांतरण की बात का विश्लेषण किया जाए तो यह आसानी से समझ में आ जाएगा कि इस दिन देश को आजादी नहीं मिली, बल्कि यह केवल सत्ता का हस्तांतरण मात्र था।
अगले ब्लाॅग में पढें़ 15 अगस्त 1947 को आजादी नहीं मिली, सत्ता का हस्तांतरण और देश का विभाजन हुआ.